या तो नूँई चलैगी
भारत की राजनीति : या तो नूँई चलैगी |
मैं जहां से आता हूँ (इटावा) वहाँ बसों के पीछे एक जाति विशेष का
नाम देख कर लोग समझ जाते हैं कि हॉर्न देना, कुछ कहना बेकार है। ये तो ऐसे ही चलेगी और पिछले
20 वर्षों से जिस क्षेत्र में रह रहा हूँ वहाँ बसों के पीछे लिखा होता है “या तो
नूँई चलैगी” और आप समझ जाते हैं कि यह एक जाति विशेष से संबन्धित बस है और इससे
कुछ भी कहना आफत मोल लेना है। इधर आम आदमी की अपनी पार्टी ने भी अपने मुखिया के
क्षेत्र की विशेषता ओढ़ पहन कर खुले आम घोषित कर दिया है कि “या तो नूँई चलैगी” हालांकि यह अड़ियलपन सिर्फ उनके क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसे अब
हम सबने पूरी तरह अपना लिया है । “या तो नूँई चलैगी” अब नए भारत की बुलंद आवाज़ बन
चुका है। न जाने कितने आंदोलनों ने हमें और हमारी राजनीति को बदलने की कोशिश की
लेकिन हमारी राजनीति की बस को तो उन्हीं 15वी शती की गलियों में हिचकोले खाना है
जिनमें आदमी धर्म, कर्मकांड, जातिवाद और
रूढ़ियों के मकड़जालों से जूझता है । “आप” के उद्भव से बहुत से लोगों को आशा हुयी थी
की उस सड़ी हुयी राजनीति से छुटकारा मिलेगा जिसमें लोकतन्त्र के नाम पर धनिकतंत्र की
स्थापना हो चुकी है लेकिन आप में लात जूता यही सिद्ध करता है कि
“या तो नूंई चलैगी”
2 टिप्पणियां:
इस स्लोगन में आपने 'आप' का एकदम सही आकलन ढूँढ़ निकाला है।
प्रतुल जी धन्यवाद । "आप" का पतन सचमुच दुखदायी रहा । वैकल्पिक राजनीति या राजनीतिक सुधारों की आशा एक बार फिर खत्म हो गयी ।
एक टिप्पणी भेजें