लोकतन्त्र की हत्या हो जाती है जब "संसद" में लफ़्फ़ाजियाँ चलें, और बिल सदन के बाहर से तय होकर कानून बन जाएँ। लोकतन्त्र तब भी नहीं रहता जब सत्ता के लिए अनाप शनाप पैसा और अनर्गल प्रलाप किए जाएँ। लोकतन्त्र तब भी दम तोड़ देता है जब प्रेस जनता के साथ की बजाए किसी दल का भौंपू बन जाता है। लोकतन्त्र में मतभिन्नता की जगह है लेकिन भिन्नमति की नहीं । हम अलोकतंत्र में रहते हैं ।
विचार पक्षियों जैसे होते हैं। मस्तिष्क के विशाल और अनंत फलक पर वे बादलों की तरह अचानक आते हैं, आकृतियाँ बदलते हैं, पक्षियों की तरह मँडराते हैं और फिर दूर कहीं गुम हो जाते हैं। बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनियाँ मेरे आगे, होता है शब ओ रोज़ तमाशा मेरे आगे। इन्हीं तमाशों पर जो विचार आकार लेते हैं उन्हें पकड़ने का प्रयास है यह चिट्ठा। आपको अच्छा लगे तो एक लघु चिप्पी चस्पा करना ना भूलें।
28 फ़र॰ 2016
20 फ़र॰ 2016
देशभक्ति की मोनोपॉली
वे देश में ईसाइयों के खिलाफ हैं , वे देश के मुसलमान नागरिकों के खिलाफ हैं, वे वामपंथियों को पसंद नहीं करते , वे कांग्रेसियों के खिलाफ हैं,वे अन्ना के खिलाफ हैं , वे अरविंद केजरीवाल के खिलाफ हैं, वे गांधी को मारते हैं, नेहरू को गालियां देते हैं, वे जेएनयू के खिलाफ हैं, वे फिल्म और अभिनय शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ हैं, वे पत्रकारों के खिलाफ हैं, वे साहित्य के खिलाफ हैं , वे आमिर, शाहरुख और सलमान के खिलाफ हैं, वे वैलेंटाइन के विरोध में हैं, वे स्त्री की आज़ादी के विरोध में हैं, वे तसलीमा नसरीन और सलमान रुशदी के विरोध में हैं , वे वैज्ञानिक सोच के खिलाफ हैं, वे दाभोलकर के खिलाफ हैं, वे अंधविश्वास से लड़ने वालों के खिलाफ हैं, वे कला के विरोध में हैं, वे ज्ञान के विरोध में हैं, वे मकबूल फिदा हुसैन के विरोध में हैं, वे मानवता की सेवा करने वाले लोगों के विरोध में हैं , वे मदर टेरेसा के विरोध में हैं , वे बीएचयू के उन शिक्षकों के खिलाफ हैं जो लोगों के हक़ में आवाज़ उठाते हैं , वे आदिवासियों, गरीबों और किसानों के खिलाफ हैं, वे खुद से अलग विचार के खिलाफ हैं।
वे इन सब को देशद्रोही कहते हैं
जो उनका समर्थक नहीं वह देशद्रोही है ।
केवल वे ही देशभक्त हैं ।
देशभक्ति उनके लिए "पाकिस्तान मुर्दाबाद" से शुरू हो कर "मोदी ज़िंदाबाद" पर खत्म हो जाती है। देशभक्ति की इस तंग सोच में वे आसाराम बापू के लिए जगह रखते हैं। उनके पास दारासिंह के लिए जगह है पर मदर टेरेसा के लिए नहीं , वे नाथुराम गोडसे के लिए मंदिर बनवा सकते हैं लेकिन इन मंदिरों में औरतों और दलितोंके लिए जगह नहीं । वे बेटा पैदा करने की दवा बेच सकते हैं और बेटियों के पहनावे पर ऐतराज कर सकते हैं, यहाँ तक की उन्हें सरे आम घसीट कर पीट भी सकते हैं । वे बलात्कार होने पर लड़कियों के चरित्र पर प्रश्न उठा सकते हैं , वे किसी भी लड़के को देशद्रोही साबित किए बिना न्यायालय परिसर में ही जज से पहले उसे सजा दे सकते हैं , वे गलियाँ दे सकते हैं , हत्याएँ कर और करावा सकते हैं - क्योंकि वे देशभक्त हैं ।
सोचिए!
शायद वे जनता के समर्थन में हैं
नहीं -------जनता उनके समर्थन में है। अगर नहीं होगी तो गद्दार कहलएगी जैसा दिल्ली और बिहार की जनता है ।
इस देश में केवल वे ही अकेले देशभक्त हैं । देशभक्ति के कॉपीराइट होल्डर वही हैं । देशभक्ति के बाज़ार में वे अपनी वैसी ही मोनोपोली चाहते हैं जैसी तालिबान की है ।
जय हिन्द
सदस्यता लें
संदेश (Atom)