1 अप्रैल 2021

शहीदों के हत्यारे

शहीदों के हत्यारे - प्रकाश के रे की कलम से 
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शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत के बाद आंदोलन को धोखा देनेवालों, जेल के अधिकारियों तथा रात के अँधेरे में शहीदों के शव को जलानेवाले पुलिस अधिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने बड़े-बड़े ईनाम दिए थे. इन क्रांतिकारियों के निकट सहयोगी रहे हंसराज वोहरा की कहानी तो लोग जानते ही हैं कि इनकी गवाही शहीदों के फ़ाँसी का सबसे बड़ा आधार बनी थी. वोहरा ने आर्थिक लाभ लेने के बजाय लंदन में पढ़ाई का ख़र्च पंजाब सरकार से लिया. वापसी में सरकारी अधिकारी बने, फिर लाहौर के एक अख़बार के संवाददाता बने और बाद में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अमेरिका में संवाददाता हुए. कई दशक बाद उन्होंने राजगुरु के भाई को पत्र में अपनी सफ़ाई देने की कोशिश की, पर यह भी लिखा कि वह दौर उन्हें आक्रांत करता है और उनकी इच्छा है कि लोग उन्हें बिसार दें. 

क्रांतिकारी से सरकारी गवाह बने जयगोपाल को बीस हज़ार रुपए मिले, जबकि दो अन्य गवाहों (ये भी क्रांतिकारी रहे थे)- फणीन्द्र घोष और मनमोहन बनर्जी को बिहार के चंपारण में पचास-पचास एकड़ ज़मीन मिली. विभिन्न ओहदों के जेल अधिकारियों- एफ़ए बारकर, एनआर पुरी और पीडी चोपड़ा को प्रोन्नति और मेडल हासिल हुए. फ़ाँसी देखकर रोनेवाले जेल उपाधीक्षक अकबर खान को पहले निलंबित किया गया, खान बहादुर की पदवी छीनी गयी, लेकिन बाद में नौकरी पर रख लिया गया. 

लाहौर षड्यंत्र केस के जाँच अधिकारी शेख़ अब्दुल अज़ीज़ को विशेष प्रोन्नति मिली. ये सारी जानकारियाँ देते हुए पंजाब के पुलिस अधिकारी आरके कौशिक ने कुछ साल पहले के एक लेख में बताया है कि अज़ीज़ का मामला दो सौ साल की ब्रिटिश हुकूमत का अकेला मामला है, जिसमें हेड कान्स्टेबल के रूप में भर्ती हुआ आदमी डीआइजी होकर सेवानिवृत्त हुआ था. अज़ीज़ के बेटे को उसी साल डीएसपी भी बना दिया गया था. इसके अलावा उसे पचास एकड़ ज़मीन भी मिली थी. 

लाहौर के एसएसपी हैमिल्टन हार्डिंग को भी पुरस्कार मिला. शहीदों के शव को जलानेवाले अधिकारी सुदर्शन सिंह, अमर सिंह और जेआर मॉरिस तथा इस काम में शामिल तमाम पुलिसकर्मियों को भी प्रोमोशन और पुरस्कार मिले. लाहौर व कसूर के प्रशासनिक अधिकारियों- पंडित श्री किशन, शेख़ अब्दुल हामिद और लाला नाथू राम- को भी ओहदे और मेडल मिले.  

अब फ़ाँसी देनेवाले जल्लादों को क्या कोसना! उन्हें तब भी और अब भी बहुत मामूली रक़म मिलती है. बहरहाल, कौशिक साहब ने बताया है कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के जल्लाद काला मसीह के बेटे तारा मसीह ने बहुत सालों बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को फ़ाँसी दी थी.