28 जन॰ 2014

राष्ट्रपति के नाम पत्र

महामहिम राष्ट्रपति को पत्र
राष्ट्रपति उद्वेलित हैं । उन्होने अपने भाषण में अपनी व्यथा सामने रखी। लगभग पूरा भाषण वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के इर्दगिर्द केन्द्रित रहा।
राष्ट्रपति जी आपके भाषण ने मुझे अचंभे में डाल दिया है। प्रश्न उमड़ रहे हैं पर उत्तर नहीं मिल रहे तो सोचा आपसे ही पूछ लूँ।
राष्ट्रपति जी अपने कहा है कि -
 महामहिम जी जनता कभी विश्वासघात नहीं करती बल्कि वह तो विश्वासघात का शिकार होती है। इलेक्शन वाच नामक संस्था ने एक लिस्ट दी है। इसमें वर्तमान कुल 536 लोकसभा सांसदों में से 160 के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं और इनमें 76 के खिलाफ गंभीर किस्म के मामले है। इनमें से 28 सांसद यूपीए के हैं (14 कांग्रेस, 8 सपा और 6 बसपा) और 20 बीजेपी के हैं। क्या संविधान की मूल आत्मा और उसके महान रचयिताओं का यह आशय रहा होगा कि हत्या, अपहरण और बलात्कार के दोषी लोकतन्त्र के मंदिर में बैठ कर उस पवित्र भरोसे को तोड़ें जिसका आपने ज़िक्र किया? क्या आप अपने भाषण में इन्हीं खामियों की ओर इशारा कर रहे थे – सत्ता के लालच के लिए क्या राजनीतिक पार्टियां आत्मतुष्टि और अयोग्यता को प्रश्रय दे कर सर्वोच्च लोकतान्त्रिक संस्था संसद को कमजोर नहीं कर रहीं और लोकतन्त्र में हमारे पवित्र भरोसे का मज़ाक नहीं उड़ा रहीं, जो इस खुले खेल के बावजूद भी 65 वर्षों से कायम है और ईश्वर ही जानता है कि कब तक कायम रहेगा?
आपने कहा है कि चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारनाओं को आज़माने की अनुमति नहीं देते तब शायद आप इंगित कर रहे होंगे कि किस तरह आज बिना स्पष्ट अवधारणाओं के मात्र चुनाव जीतने कि क्षमता को देख कर ही पार्टियां टिकट बँटतीं हैं और सत्ता के लिए बिना स्पष्ट अवधारणाओं के गठबंधन करतीं हैं। क्या आप आज की इस विडम्बना पर तंज़ कसना चाहते थे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तो कब की विलुप्त हो चुकी है और वर्तमान कांग्रेस असल में कांग्रेस (आई) का ही विस्तार है। इसके पदाधिकारी अक्सर अपनी पार्टी की नीतियों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं और विचारधाराओं वाले मंचों पर पारिवारिक कहानियाँ सुनाते हैं। क्या आप कांग्रेस के उस विद्रूप की ओर तो इशारा नहीं कर रहे थे जो इसकी कथनी और करनी में झलकता है। कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ और कांग्रेस खुद पूँजीपतियों के हाथ। वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी बस नाम के लिए समाजवादी है और उसमें वह तमाम तत्व शामिल हैं जिनका समाजवाद से नहीं अराजकतावाद से सीधा नाता जरूर है। उधर भाजपा कि विचारधारा भी दिग्भ्रमित करने वाली है। वे कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मोदी जी विकास पुरुष बना दिये गए हैं लेकिन गुजरात अभी भी सामाजिक विकास के महत्वपूर्ण मानदंडों पर पिछड़ता जा रहा है, लेकिन मैं भ्रमित हूँ कि आपने “व्यक्ति” क्यूँ कहा ? क्या आप किसी खास व्यक्ति को इंगित कर रहे थे ? बेशक ऐसी स्थिति किसी भी लोकतन्त्र के लिए खतरनाक है जहां सभी जिम्मेदार पार्टियां का कोई विज़न न रह जाए और वे आकंठ भ्रष्टाचार में डूब कर पूँजीपतियों के हाथ का खिलौना बन जाएँ। निश्चित ही आप दुखी हैं कि पार्टियों और सरकारों के लिए जनकल्याण की बजाए स्व कल्याण ही मुख्य मुद्दा रह गया है। आपने सही कहा है कि सरकार कोई खैराती संस्था नहीं है जो अपने सदस्यों की  तिजोरियाँ भरने के काम आए। आखिर कैसे कोई सरकार कैसे देश के संसाधनों को खैरात में बाँट सकती है। कोयला, प्रकृतिक गैस और स्पेक्ट्रम जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों की खैराती बंदरबाँट को कोई कैसे सही मान सकता है।
मैं तब भी भ्रमित हुया जब आपने कहा कि लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। आप किस अराजकता की बात कर रहे थे ? राज्य की सम्पूर्ण शक्ति के बावजूद दंगे और हत्याएँ होना 1984, 1991, 2002, 2013 निरंतर अलग अलग सरकारें और पूर्ण सत्ता फिर भी ऐसी अराजकता? घोटालों के गवाहों की जेलों में हत्या, ईमानदार अफसरों और पत्रकारों कि सड़क पर हत्या। नेताओं पर हत्या, रेप और अपहरण के केस दर्ज होना और न्यायालय के आदेश को पुनः इन अपराधी नेताओं के पक्ष में पलट देना भी तो अराजकता ही है – लोकप्रिय अराजकता। राष्ट्रपति जी महाराष्ट्र में गणतन्त्र दिवस के अगले दिन एक नेता द्वारा खुले आम अपने लोगों को चुंगीनाका पर हमला करते और हिंसा करने का आदेश देना, उत्तर भारतियों के खिलाफ मुहिम चलना और निरंतर अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलना यही दिखाता है कि लोकप्रिय अराजकता अब शासन का विकल्प बन चुकी है। ओवैसी के जहरीले भाषणों के बावजूद वे जब सदन में दिखते हैं तो विश्वास पक्का होजाता है कि लोकलुभावन राजनीति अब सुशासन का विकल्प बन चुकी है।


पता नहीं लोग क्यूँ कह रहे थे की आपका भाषण अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की निंदा है। पर मुझे लगा कि आप भी केजरीवाल की ही भांति हमारी सरकारों, नेताओं और पार्टियों की ही आलोचना कर रहे थे। क्यूंकी जनता के हित के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन और शासन पर हिंसक हमले में वही अंतर है जो लोकतन्त्र और लोकलुभावन अराजकता में हैं। आप केजरीवाल द्वारा बिजली और पानी पर सबसिडी को बेशक खैरात नहीं कह रहे थे क्यूंकी आप महामहिम जानते हैं कि जनकल्याण खैरात नहीं अधिकार है।

गणतन्त्र का नागरिक 

अनुपम दीक्षित 

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