21 नव॰ 2011

माउण्टबेटन और मायावती


क्या समानता है माउंटबेटन और मायावती में ? दरअसल मायावती या फिर अधिक सटीक रहेगा की भारत की गटर राजनीति उस काम में सफल हो जाएगी जिसमें माउण्टबेटन असफल रहे थे। 1947 में माउण्टबेटन ने एक ऐसी योजना बनाई थी जिसे प्लान बाल्कन के नाम से जाना जाता है।बाल्कन प्रदेश यूरोप का ऐसा क्षेत्र है जिसमें भाषाई, सांस्कृतिक आधार पर बनते हुये  छोटे छोटे देश हैं जो आपस में लड़ते रहते थे। दोनों महायुद्धों की जड़ें इसी बाल्कन प्रदेश में थीं और इसे यूरोप का नासूर कहा जाता था। आज भी यह क्षेत्र यूरोप का सबसे अशांत क्षेत्र है। इसमें बोस्निया, सर्बिया, क्रोएशिया, हर्जगवेना, मेसीडोनिया आदि देश शामिल हैं। 


 इस योजना के अनुसार भारत को भारत ना मानते हुये कई रियासतों का एक झुंड माना गया था और अंग्रेजों ने उन सभी रियासतों को स्वतंत्र होने का अधिकार दिया था। उस समय भारत में ऐसी 600 से अधिक रियासतें थीं। अगर यह योजना सफल हो जाती तो आज यह क्षेत्र 600 छोटे छोटे देशों का एक ऐसा झुंड होता जो भाषा, संसाधनों, और अन्य मसलों पर झगड़ता  रहता और एशिया का नासूर बन जाता। पर नेहरू की माउण्टबेटन से दोस्ती के कारण यह प्रयास सफल ना हो सका और आखिर में भारत के दो टुकड़े किए गए। भारत और पाकिस्तान। सभी रियासतों को इन्हीं दो में शामिल होने का अवसर दिया गया। वह आज़ादी के जमाने की राजनीति थी जिसमें नेहरू और पटेल ने भारत को  जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और एक यह राजनीती है जो ठीक अंग्रेजों की तर्ज़ पर भारत के समाज में मौजूद हर दरार को ढूंढती है और फिर उसे चौड़ा करके खाई बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती। मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश के चार टुकड़े करने का प्रयास इसी घटिया और रद्दी राजनीति का फल है। हिन्दू, मुसलमान तो अब पुरानी बात हैं अब तो नयी दरारें खोजी जा चुकीं हैं क्षेत्रवाद, भाषा,  जाति, उपजाति, वर्ग, वंश आदि। यद्यपि संविधान इस प्रवृत्ति को देश द्रोह मानता है पर यहाँ संविधान मानता कौन है?  छोटे प्रदेश अगर विकास की गारंटी हैं तो मेघालय, असम, नागालैंड, झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ अविकसित क्यूँ हैं और महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़े प्रदेश अधिक विकसित क्यूँ हैं? विकास आकार पर नहीं सही नीतियों, दृढ़ इच्छा शक्ति, मेहनत और लगन पर आधारित होता है। 90 के दशक में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था जिसे मंदिर के चक्कर में नष्ट कर दिया गया। यदि भाजपा ने प्रदेश के विकास पर ध्यान दिया होता तो आज यह दुर्दशा न होती। मायावती को भी ऐसा ही बहुमत मिला था और लोकतन्त्र विशेषज्ञ स्पष्ट बहुमत के फायदे गिनाते नहीं थकते थे पर वे भूल गए थे की स्पष्ट बहुमत तब अच्छा होता है जब नेतृत्व कुछ करना चाहे नहीं तो कमजोर विपक्ष और जोड़ तोड़ के चलते यह भ्रष्टाचार का सबसे बढ़िया अवसर होता है।  और उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य यही रहा है कि इसे कोई नेता नहीं मिला जो इसका भला सोचे। अब तो जनता को ही सोचना है कि मुद्दे राजनैतिक दल नहीं जनता तय करे। क्यूँ न चुनावों के समय एक मांगपत्र जनता प्रस्तुत करे और उसे हो वोट करे जो इसका समर्थन करे। जाग जाइए वरना माउण्टबेटन (उन्हें तब मनबांटन भी कहा जाता था ) के देसी अवतार कहीं अधिक खतरनाक हैं। 

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