आपने सही पढ़ा। यही है गुड टाइम किंगफिशर का। भारत की अग्रणी विमानन कंपनी अचानक घाटे में चली जाए। अपनी प्रतिद्वंदी से सम्झौता कर ले (जेट और किंग फिशर ) तो आश्चर्य होना लाज़मी है लेकिन ज़रा गौर से देखिये चालाकी समझ में आ जाएगी। जेट और किंगफिशर भारत की अग्रणी विमानन कंपनियाँ है। नरेश गोयल और माल्या सस्ती उड़ानों के विरोधी रहे हैं। दोनों ही भारतीय विमानन क्षेत्र में विदेशी निवेश चाहते हैं। जेट ने सहारा को गड़प लिया तो किंग ने डेक्कन को। इस तरह अब सरकारी इंडियन को छोड़ दें तो जेट और किंग फिशर ही हैं। फिर दोनों साथ आगाए। ग्राउंड स्टाफ, और कोड व रूट शेयर भी कर लिए और इस प्रकार अपनी लागत भी कम की और भारतीय बाज़ार पर एकछत्र अधिकार भी हो गया। बेशक इसमें अभी तक सरकार या रेगुलेटर को एमआरटीपी के उल्लंघन के संकेत नहीं मिले हैं। दोनों के साथ आने से सस्ती विमानन कंपनियों को झटका लगा है और दाम तय करने में यह गिरोह मुख्य भूमिका में है। सरकार नीतियाँ बनती है जनता के हिट के लिए और प्राइवेट कंपनियाँ उन नीतियों को बदलवातीं हैं अपने हितों के लिए। भारत में डेक्कन एयरलाइन्स के आरंभ से एक नए युग की शुरुआत हुयी थी। आप सस्ते में हवाई सफर का सकते थे। सस्ती ऐरलाइन्स ने भारत ,में हवाई उड़ानों को विलासता के घेरे से निकाल कर जरूरत बना दिया है। यह सही है की बेहतर ढांचा और संपर्क सुविधाएं ना होने से हवाई यातायात अभी सफल नहीं हो पा रहा है लेकिन इस तथ्य के लिए किसी रिसर्च की ज़रूरत नहीं है की सस्ती सेवाओं से ही भारत में यात्रियों की संख्या बढ़ी है। सरकार ने इसी के मद्देनजर एक नियम बनाया है की हर निजी कंपनी को अपनी उड़ानों का कुछ प्रतिशत दू दराज़ के गैर लोकप्रिय रस्तों पर भी चलना होगा। जेट और किंग इसका भी विरोध करते रहे हैं। इसके अलावा वे यह भी चाहते हैं की उन्हें अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें भी करने दी जाएँ। इस प्रकार जेट और किंग असल में भारतीय बाज़ार पर कब्जा चाहती हैं और सस्ती उड़ानों को बाद करके अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहतीं हैं। हाल ही में उड़ानें बंद करने की चाल भी असल में दबाव की नीति है। वे सरकार से मनमाने फैसले करवाना चाहते हैं। सरकार को चाहिए की वह इसकी ब्लैकमेलिंग का शिकार ना हो। सरकार को इस मसले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं आखिर यह माल्या साहब का बिजनेस हैं। घबराइए नहीं यह किंगफिशर के लिए अच्छे समय की शुरुआत है। और अगर आप भी ऐसी मक्कारी का शिकार हुये हैं तो बाथे रहिए हाथ पर हाथ धरे। अमेरिका होता तो विमानन कंपनी को इतनी उड़ाने रद्द करने से पहले दास बार सोचना पड़ता।
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