पीके - बीजेपी |
बीजेपी ने भी ये मुखौटे ओढ़े हैं और हर बार मुखौटों को उतारना उसके लिए द्विविधा का सबब रहा है। यह दुविधा गुजरात दंगों के दौरान भी देखी गयी थी जब पार्टी अंदर ही अंदर मुदित थी पर मुखौटा "राजधर्म" कह कर लानतें भेज रहा था और आज भी जब मुखौटा "विकास" कर रहा है तो असल "घर वापसी, पाठ्यक्रम सुधार, संस्कृत पाठन, लव जिहाद करा रहा है । हुआ तब भी कुछ नहीं था होना अब भी कुछ नहीं है।
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