मीनार पर चढ़ कर बांग देते है, एंकर हैं हर मुद्दे को धांग देते हैं
सदन के गलियारों से लालाओं के दालानों तक, हम एंकर हर काम को अंजाम देते हैं।
कभी फेंक देते हैं तो कभी टांग देते हैं, एंकर हर शख़्स को ऐसा ही मक़ाम देते हैं।
तबीयत अपनी घबराती है सुनसान रातों में, जब एंकर चीख चीख कर बांग देते हैं।
पत्रकारिता अब भी एक मिशन है यारो, पर ये मोटे कॉर्पोरेट मुर्गे मोटा ईनाम देते हैं।
कहे रवीश मर गया है रिपोर्टर, अब तो एंकर ही हर काम को लाम देते हैं।
टीआरपी, विज्ञापन और आकाओं को बचाना है इसलिए एंकर आम आदमी के मुदद्दों को थाम लेते हैं
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