18 नव॰ 2016

लाइनों में देश

सरकार का तर्क : ऐसा होना ही था । इसके लिए गोपनियता जरूरी थी । सारी तैयारी थी । पर्याप्त कैश है । व्यवस्था दुरुस्त है ।
असल हालत : ऐसी खबरें हैं कि चुनिन्दा लोगों को कदम के बारे में जानकारी थी । सरकार ने पिछले नौ दिनों में 7 बार नियम बदले हैं जिससे यही संकेत मिलता है कि तैयारी पूरी नहीं थी । बैंक समान्यतः 10 बजे खुलते हैं , 11 बजे तक कामकाज शुरू हो पाता है और 3 या 4 बजे तक कैश खत्म हो जाता है । इस बीच औसतन 100 लोगों का ही काम हो पाता है । इसका अर्थ है कि कैश पर्याप्त नहीं है । और व्यवस्था का आलम यह है कि घोषणा करने के 4 दिन बाद आर्थिक सचिव को बैंकिंग मित्रों का प्रयोग करने की याद आई
क्या किया जाना चाहिए था : यह ठीक है की गोपनियता आवश्यक थी लेकिन यह देखना भी जरूरी था कि जब 85% प्रचलित मुद्रा समाप्त हो जाएगी तब उससे निबटने के लिए कैसे कदम उठये जाएंगे । पर्याप्त मात्र में नोटों की छ्पाई, उन्हें वितरित करने का तंत्र, मशीनों और सोफ्टवेयरों का अपडेटिकरण, ग्रामीण क्षेत्रों में कैश वितरण व्यवस्था जैसी समस्याओं के बारे में भी विचार आवश्यक था।
·         इसके लिए अच्छी पृष्ठभूमि वाले काबिल अफसरों के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स बनाई जा सकती थी जिनमें बैंकिंग, वित्त, कृषि, उद्द्योग और सूचना के क्षेत्रों में काम कर चुके विशेषज्ञ अफसर होते । इस फोर्स को गोपनीयता के निर्देश दिये जा सकते थे ।  
·         बैंकों के दायरे को ग्रामीण क्षेत्रों में महीनों पहले बढ़ाना शुरू किया जा सकता था । ग्रामों में कई गांवों के बीच एक या दो बैंक होते हैं । इस स्थिति में पहले सुधार होता और तब यह कदम उठाया जाता।
·         नए नोट जब डिजायन किए जा रहे थे तब उसके आकार को ऐसा रखा जा सकता था जो पुराने एटीएम में ही फिट हो सकते और स्कैनर सेंसर भी उन्हें पहचान पाते तो बड़ी समस्या हल हो जाती ।
·         नोटों के वितरण के हर संभव चैनल को पहचान लेना चाहिए था और प्रधान मंत्री की घोषणा के साथ ही रेडियो, टीवी से विस्तृत दिशा निर्देश जारी करने चाहिए थे । जबकि हुआ उल्टा । प्रधानमंत्री जी खुद आए , घोषणा की और जापान चले गए। कोई अधिकारी संचार माध्यमों पर अगले दो दिनों तक नहीं आया । वित्त मंत्री आए भी तो सभी आरोपों को खारिज करते नज़र आए। जब स्थिति विस्फोटक हुयी तो प्रधानमंत्री राजनीतिक भाषण देते हुये गोवा में रोने लगे । राजनीति करने की जगह तुरंत मीटिंग करके हालत का जायजा लेना चाहिए था।  
·         बैंकों के लिए दिशनिर्देश पहले से तैयार रहने चाहिए थे । घोषणा होते ही बैंकों को स्पष्ट दिशनिर्देश डिस्प्ले करने कि व्यवस्था करें को कहा जा सकता था ।

विमौद्रिकरण अच्छा है या बुरा इसपर बहस हो सकती है । यह अच्छा कदम भी हो सकता है लेकिन इसे बहुत बुरी तरह से अंजाम दिया गया है । 

कोई टिप्पणी नहीं: