मोदी जी ने राष्ट्रव्यापी ऑपरेशन तो कर दिया जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं । इतने साहसिक कदम के लिए जिस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति और समर्थन की आवश्यकता होती है वह उनके पास है । वे अपनी आर्थिक दृष्टि का परिचय गुजरात के दिनों में दे चुके हैं जिसे गुजरात मॉडल माना जाता है । गुजरात में रहते हुये जिस प्रशासनिक दक्षता का उनहोनने परिचय दिया था वह सरहनीय है। इसीलिए जब 8 नवंबर की रात उन्होंने इस भीषण निर्णय की घोषणा की थी तब चौंकने के अलावा पीछे कहीं यह आश्वासन भी था की वे दक्ष प्रशासक हैं और कार्यपालिका के निर्देश के लिए उसके पीछे खड़े रहेंगे। लेकिन अपनी आर्थिक घोषणा की तरह ही वे सबको चकित करते हुये जापान चले गए तब जबकि देश को उनकी और उनके मार्गदर्शन की सबसे अधिक जरूरत थी। यही नहीं जब जनता में अफरा तफरी फैली और लंबी लाइनें लगने लगीं तब उनका जापान से मज़ाक के मूड में आया वीडियो जले पर नमक छिड़कने जैसा था । जब जनता मोदी मोदी करते हुये उनसे अक्षम नौकरशाही को दिशा देने की अपेकक्षा कर रही थी तब वे मज़ाक कर रहे थे की कांग्रेस ने चवन्नी बंद की थी हमने 1000 बंद किए जिसकी जैसे हैसियत । ऐसे मज़ाक फेसबुक पर तो अच्छे लगते हैं लेकिन गंभीर और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अगर इस स्तर तक उतर आयें तो आसंवेदनशीलता प्रकट होती है । भारत लौटने पर जब उन्हें स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ होगा तो उनके आँसू निकल आए जिसे हम सबने उनकी गोवा रैली में भी देखा । स्वाभाविक है की जब आप इतना बड़ा कदम उठाएँ और वह फ़ेल होता नज़र आए तब आँसू निकालना वाजिब है । इन आंसुओं ने बेशक हमें यह दिखाया की हमारे प्रधानमंत्री उतने असंवेदनशील सनहीन है जीतने जापान से दिखरहे थे । प्रधानमंत्री क भी लगा की अब तो इस काम की योजना बनाना जरूरी है । यह साबरमती के घाट बनवाने जैसा काम नहीं था जिसमें बिना योजना के काम चल जाता । यहाँ तो 125 करोड़ प्यारे देशवासियों की बात थी । इसलिए रातों को भी ना सोने वाले और बिना छुट्टी के काम करने वाले पालनहार मोदी जी ने आधीरात को मीटिंग बुलाई वह भी 6 दिन बाद । हालांकि यह मीटिंग अगर वे उसी दिन सुबह या दोपहर में बुलाते तो अगले दिन तक जनता में इसके कदमों की खबर पहुँच जाती । खैर उनकी कामकाजी शैली है । 6 दिन बाद की गयी इस मीटिंग के बाद जो सामने आया वह इस बात की पुष्टि करता था की हमारे देश की जनता बिलकुल किसी फौज की तरह इस निर्णय को मानने के लिए तैयार थी लेकिन सरकार के पास तैयारी नहीं थी । आर्थिक सचिव कहते नज़र आये की टास्क फोर्स बनाया "जाएगा", माइक्रो एटीएम लगाए "जाएंगे" इत्यादि । 6 दिन बाद भविष्य की प्लानिंग ? तब तक 16 लोग अपनी ज़िंदगी से हाथ धो चुके थे , कारोबार ठप्प हो चुका था , जनता काम धाम छोड़ कर लाइनों में थी। पहले की डेड लाइनें बढ़ायी जाने लगीं, और मोदी जी 50 दिन का समय मांगते नज़र आए । 50 दिन बाद सपनों के भारत का वादा भी किया और रोये भी । अपनी कुर्बानियों का भी हवाला दिया । हर प्रकार से जनता को आश्वस्त करते नज़र आए । अगले दिन गाजीपुर कि रैली में उनके भाषण में फिर तेज था हालांकि उनकी रैली में जो भीड़ थी पता नहीं उसे अपने नोट बदलवाने की चिंता क्यूँ नहीं थी । शायद उसे नए नोटों में पेमैंट मिल चुका था इसीलिए वह दुगने जोश से जादू के खेल की तरह ताली बजते नज़र आए और मोदी जी भी पूरे जादूगर । वे बार बार कह रहे थे -- एक बार फिर ताली बजाईए" और तालियाँ बज रहीं थीं । लेकिन इस तालियों की गड़गड़ाहट के पीछे देश की जनता त्राहिमाम कर रही थी । वे क्रूर हो गए । काला धन वाले नींद की गोलियां ले रहे हैं और गरीब जनता आराम से सो रही है । शायद ताली बजने वालों को इकट्ठा करने वाले उनके दरबारियों ने उन्हें नहीं दिखाया कि गरीब सो नहीं रहा लाइन में खड़ा है और भविष्य को ले कर परेशान है। जबकि काला धन वाले अपने पैसे को ठिकाने लगा चुके हैं । खुद मोदी जी ने विदेशों में संपत्ति खरीदने, सोना खरीदने, निवेश करने और कंपनियाँ खोलने के मामलों में, धन को आसान शर्तों पर विदेश भेजने की सीमा 3 साल पहले की 60000 डॉलर से बढ़ा कर 2 लाख डॉलर कर दी है जिससे 4 लाख करोड़ रु से अधिक धन बाहर गया है । सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का 1.14 लाख करोड़ लोन अब बट्टे खाते में हैं जिसे माफ कर दिया गया है । यादव सिंह जैसों तक पर भी कार्यवाही नहीं हुयी है । ऐसी भी घटनाएँ हैं कि बीजेपी के खातों में घोषणा से ठीक पहले करोड़ों जमा हुये थे । पार्टीसीपेटारी नोट और हवाला पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी है । काला धन रखने वालों की जानकारी भी सरकार के पास है लेकिन इन पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी है । राजनीतिक पार्टियां के चंदे पर भी कोई कदम नहीं है । कम से कम मोदी जी बीजेपी को ही सूचना कानून के दायरे में ले आते । लेकिन यह उनके लिए कठिन है । क्योकि 2 वर्ष के कार्यकाल देखते हुये यही लगता है कि वह बेचारे सरकार और पार्टी में अकेले हैं । विदेश मंत्री होते हुये भी सभी तरह के कम काज और यहाँ तक कि घोषणाएँ भी वे खुद करते हैं । वित्त मंत्री के होते हुये भी यह काम भी खुद ही करते हैं । सरकार में केवल वही हैं जिनके बारे में यह सुनाई देता है कि वे दिन रात काम में जुटे हैं । तभी वे छुट्टी नहीं ले पाते । बिना ठीक से आराम किए थकान के कारण भी आपके निर्णय लेने कि क्षमता पर असर पड़ता है । लेकिन मोदी जी बचपन से खतरों के खिलाड़ी रहे हैं । जहां माँ भारती के सपूत भरत , सिंह से खेलते थे तो मोदी घड़ियाल से । शायद आँसू इसी ट्रेनिग का नतीजा हैं ।
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