16 अग॰ 2014

रिमोट कंट्रोल: एक शोध

रिमोट कंट्रोल: एक शोध
अगर कोई आपसे पूछे कि रिमोट कंट्रोल का जनक कौन है तो स्मार्ट फोन के जरिये गूगल करके स्मार्ट बनने की कोशिश मत कीजिये, मैंने इस पर काफी शोध किया है और बता दूँ कि इसका आविष्कार निकोला टेस्ला ने नहीं बल्कि हिंदुस्तान ने ही किया था।
रिमोट परंपरा: हमारे यहाँ रिमोट कंट्रोल की सुदीर्घ परंपरा रही है। आपको तो केवल एक ही रिमोट कंट्रोल का नाम पता है ...दस जनपथ लेकिन मैंने इतिहास का विषद अध्ययन करके ऐसे बहुत से रिमोट और कंट्रोल दोनों खोज निकाले हैं।
अब अगर शुरू से ही शुरू करें तो यह सृष्टि ही रिमोट और कंट्रोल का अनूठा उदाहरण है।ॠग्वेद की ॠचाएँ भी यही बताती हैं कि इस संसार का नियंता कोई और है। रिमोट की खोज वहीं से शुरू हुयी थी। ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में हमें उसी रहस्य की खोज के दर्शन होते हैं। 

सृष्टि का कौन है कर्ता ! कर्ता है वा अकर्ता !
ऊंचे आकाश में रहता । सदा अध्यक्ष बना रहता। 

वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता !

हैं किसी को नहीं पता ! नहीं है पता !!!!!

यानि रिमोट की चिंता आदि कालीन है। हमें रिमोट का अभी तक कोई दृश्य प्रमाण तो नहीं मिल पाया है लेकिन महसूस यही होता है कि हम सब नाचने के लिए ही पैदा होते हैं। परम ज्ञानी श्री राजेश खन्ना जी ने भी कुछ ऐसा ही संकेत अपनी फिल्म “आनंद” में दिया था जब वे कह रहे थे “बाबू मोशाय....हम सब उसके हाथ कि कठपुतलियाँ हैं...” कुछ ऐसे ही तुलसी ने भी कहा है
“उमा दारु-जोशित की नाई, सबहीं नचवात राम गोसाईं”
उपनिषदों में भी इस रिमोट कि दूर ध्वनि सुनाई देती है। बुद्ध को रिमोट के बारे में ज्ञान प्राप्त हो गया था इसलिए उन्होंने माध्यम मार्ग निकाला और रिमोट के चक्कर से निर्वाण या मुक्ति पाने के रास्ते बताने लगे। यह रास्ता बहुत उम्दा था बहुत कुछ गांधी जी के असहयोग जैसा। सब कुछ छोड़ कर सन्यासी बन जाओ। जब किसी काम के ही नहीं रहोगे तो रिमोट क्या खाक चलाएगा तुम्हें। कठपुतली जनता ने उनके रास्ते को हाथों हाथ लिया क्यूंकी वह रिमोट से संचालित होती रह कर भ्रमित ही गयी थी। फिर तो बुद्ध भी अपने बोधिसत्वों सहित इस रिमोट से मुक्ति दिलाने में सक्रिय हो गए, ऐसा ग्रंथ हमें बताते हैं। हालांकि जब भी बुद्ध से रिमोट और इसकी प्रकृति के बारे में पूछा गया तो वे चुप्पी साध गए। उन्होंने इस चर्चा को अव्याकृत कह कर टाल दिया था।
बहुत बाद में जा कर शंकरचार्य ने “ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या” के सूत्र द्वारा इस उपनिषदों की ध्वनि को स्पष्ट किया और बताया कि यह सूक्त रिमोट की सर्वोच्चता और कंट्रोल की ओर ही संकेत करता है। जिस प्रकार ब्रह्म कण कण में है, रिमोट भी कण कण में है। यह रिमोट असल में किस के पास है यह पता लगाना ज़रा टेढ़ीखीर है। आखिर कौन किसे कंट्रोल कर रहा है यह बड़ी भ्रम पूर्ण स्थिति है। एक ओर तो भजन गायक का कहना है –
“भगत के बस में हैं भगवान”
तो उधर तुलसी कहते हैं कि -
“होयहि सोई जो राम रची राखा”
कुछ ऐसी ही स्थिति यहाँ भी है। अब लोकतन्त्र में मतदाता सोचता है कि नेता का कंट्रोल उसके हाथ में है तो नेता सोचता है कि जनता का कंट्रोल उसके पास है लेकिन उपनिषद के नेति नेति सूत्र की मानें तो “न यह है ना ही वह” बल्कि असली कंट्रोल तो कहीं और है। आज ब्रह्म पूंजी है और पूंजीपति ही असली कंट्रोलर है।
अगर आपको साहित्यिक प्रमाण कुछ हल्के लगते हैं तो ऐतिहासिक प्रमाण भी मौजूद हैं। ऐसा ही रिमोट और कंट्रोल का जबर्दस्त तंत्र कौटिल्य और चन्द्रगुप्त मौर्य का था। पर्दे के पीछे कौटिल्य था और सामने चन्द्रगुप्त। कौटिल्य आज के रिमोट कंट्रोलरों से अधिक चालाक थे इसलिए रिमोट कंट्रोल की उस व्यवस्था पर, इससे पहले कि कोई और नटवर प्रसिद्दि कमाए, खुद ही एक पुस्तक “अर्थशास्त्र” लिख डाली जो अब तक उनके लिए प्रसिद्धि का जरिया है और अनेक प्रकाशकों के लिए कमाई का। 
सोनियाँ जी तो अब लिखने का प्लान बना रहीं हैं। काश मैं उनका “रिमोट सलहकार” होता तो बता देता कि उन्हें चुनाव के ठीक बाद एक किताब लिख देनी चाहिए “एक्सपेरिमेंट विद रिमोट कंट्रोल”। खैर अब बिन मांगी सलाह मोदी जी के लिए है, इससे पहले कि नृपेन्द्र मिश्रा जी 2019 या 2024 में ऐसी ही कोई खुलासू पुस्तक लिखें एक किताब मोदी जी को पहले से लिख रखनी चाहिए “वन रिमोट इस नॉट इनफ़” आखिर उन्हे एक से अधिक रिमोटों का अनुभव है जैसे संघ, अडानी और अंबानी आदि।

मध्यकाल में रिमोट कंट्रोल का प्रचलन बहुत बढ़ गया था। इस काल में स्त्रियों ने अपनी रिमोट ताकत को पहचाना और कई पेटीकोट सरकारों की स्थापना की जिनमें अकबर की माहम अनघा, शाहजहां की नूरजहां आदि प्रमुख हैं।
अंग्रेजों के काल में भी रिमोट कंट्रोल का प्रयोग खूब हुआ। बंगाल में अंग्रेजों ने रिमोट कंट्रोल को वह अर्थ दिया जिसकी जरूरत आज हर रिमोट कंट्रोल महसूस करता है। यह था द्वैध शासन। मतलब शासन के लड्डू का लुत्फ खुद उठाओ और डायबिटीज़ के दुःख दूसरे को भोगने दो।
एक तरफ तो हमारे देसी रजवाड़े भोगविलास में डूब कर इतने नाकारा हो चुके थे कि कोई वारिस पैदा करने में अक्षम हो जाते थे। अब राजे-रजवाड़े  के जमाने में भारत की इस राष्ट्रिय बीमारी का शर्तिया इलाज का दावा करते किसी हाकिम उसमानी का अस्तित्व तो शायद नहीं था , अंग्रेजों ने इसका इलाज कर दिया। इसी बीमारी के सहारे अंग्रेजों ने रिमोट कंट्रोल सरकारों कि एक श्रंखला ही खड़ी कर दी और भारत पर कब्जा कर लिया। स्कूलों में इसे सहायक संधि के नाम से पढ़ाया जाता है।

आज़ादी के बाद यू पी ए युग में इस प्रथा का पूर्ण विकास हुआ जब इसे द्वैध शासन के स्थान पर “त्याग का शासन” कहा जाने लगा और रिमोट कंट्रोलर एक मसीहा के रूप में देखा जाने लगा। इस प्रथा का लोगों पर इतना असर हुआ है कि लोग किताबें लिख कर इसका विश्लेषण कर रहे हैं। 

इस प्रकार अपने वर्षों के अध्ययन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि भविष्य रिमोट कंट्रोल का ही है।

कोई टिप्पणी नहीं: