14 अप्रैल 2012

निर्मल तो नॉर्मल है यह बवाल ही एबनॉर्मल है।

निर्मल बाबा की कृपा पर बवाल मचा है। एक न्यूज़ चैनल पर शाम का पूरा समय(7 बजे से 12 बजे तक) निर्मल बाबा को दे दिया गया। आरोप थे कि वे 36 से अधिक चैनलों पर प्रचार करते हैं (पता नहीं इस चैनल ने अपने प्राइम टाइम के मूल्य को इस आंकड़े शामिल किया या नहीं) , वे भक्तों से प्रति सत्संग 2000 रुपये लेते हैं और चमत्कार का दावा करते हैं। इस देश में यह कोई नयी बात नहीं है। अनेक मुरारियों, आसारामों, बापुओं, रामदेवों  की दुकान चल सकती है तो निर्मल बाबा की दुकान क्यूँ नहीं। जब पूरी दुनियाँ में सेल्फ हेल्प किताबों के पीछे पागल हो, लीडरशिप और मोटीवेशन एक्सपर्ट्स मोटी फीस लेकर अपनी दुकान जमा सकते हैं तो निर्मल बाबा क्यूँ नॉर्मल नहीं हैं? आखिर जांच तो उन बाबाओं की होनी चाहिए जो भक्तों से पैसा नहीं लेते और फिर भी उनका साम्राज्य करोड़ों का है। आखिर क्या स्रोत है इस पैसे का? मैं बाबाओं का फैन नहीं हूँ और न ही निर्मल बाबा की तरफदारी कर रहा हूँ लेकिन इस सारे मामले में मुझे तथ्य कम ईर्ष्या ज्यादा लगती है। ये सभी निर्मल विरोधी उस समय कहाँ चले जाते हैं जब बाबाओं के आश्रम में हत्याएँ, व्यभिचार  और अनाचार होता है। टीवी एंकर का लगातार प्रश्न यह था कि इस पैसे की आपको क्या ज़रूरत है। क्या ऐसा ही प्रश्न उसे भारत के उन मंदिरों से नहीं पूछना चाहिए जहा हर वर्ष करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है? मेरे विचार से तो बाबा कर्म को एक अब एक सामान्य व्यवसाय मान कए सरकार को अब मंदिरों, बाबाओं और धर्मार्थ संस्थाओं पर भी  बकायदा टैक्स निर्धारित कर देना चाहिए। फिर यदि लोग स्वयं ही उल्लू बनना छाते हैं तो बने। निर्मल दरबार, आसाराम दरबार, मोरारी दरबारों में मैंने अनेक पढे लिखों को भी देखा है। अब अगर इतना सब होने के बाद भी कोई इन्हें उल्लू बना सकता है तो सरकार, पुलिस और मीडिया को दर्द क्यूँ हो रहा है। वे अपनी खुशी से पैसे दे कर सत्संग में जा रहे हैं। आखिर मानसिक शांति की खोज में लोग मनोचिकित्सकों को पैसे दे सकते हैं  तो बाबाओं को क्यूँ नहीं? जब लोग प्रचार करके पेरेंटिंग एक्सपर्ट बनकर प्ले स्कूल खोल कर लोगों को ठग सकते हैं तो निर्मल भला यह क्यूँ नहीं कर सकते? आखिर तब तो किसी मीडिया वाले ने उस प्ले स्कूल संचालिका से यह नहीं पूछा कि आपको यह ज्ञान कहाँ से और कैसे मिला?  निष्कर्ष यह कि निर्मल के बहाने ऐसे सभी मामलों में स्थायी हल निकालना चाहिए। अभी का बवाल तो महज़ एक ऐसी कार्यवाही लग रहा है जो ईर्ष्या से प्रेरित है।

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