30 नव॰ 2011

जय सोनिया मैया की !

क्या बात है !! हमारी सरकार बड़ी ही बेमुरव्वत है। वह तो सोनियाँ गाँधी जी ना होतीं तो मनमोहन सिंह तो सिंह की तरह हम सबको खा गए होते। बड़े  सख्त हैं जी हमारे प्रधानमंत्री।   सोनियाँ जी की दया है जो हमें मनरेगा मिला, उन्हीं की दया से सरकार रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ा रही। पैट्रोल के दामों को भी उन्हीं की वजह से कम किया जा सका।  जब जब इस देश पर कलमाड़ी और राजा जैसे राक्षसों का साया आता है तो सिंह की दहाड़ ही नहीं निकलती। सन्नाटे को तोड़ने का काम तो मम्मी जी या बाबा जी (रामदेव नहीं बाबासूट वाले बाबा - राहुल बाबा ) ही करते हैं। सोनियाँ जी ने ही हमें सूचना का अधिकार दिलवाया और वही हम सब देशवासियों को एक निराली पहचान भी दिलवा रहीं है - युनीक आई डी कार्ड। सोनिया जी दानवीर हैं। वे कर्ण, हर्ष और हरिश्चंद्र जैसे मिथकों को साकार करतीं है। भारत देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी का त्याग कोई छोटा कृत्य तो नहीं है।
वे भ्रष्टाचार पर अध्ययन करती रहीं हैं । हाल ही में उनकी रिसर्च से पता चला है की दरअसल भ्रष्टाचार प्लेग नामक बीमारी की तरह होता है। इसकी घोषणा उन्होंने युवा कांग्रेस सम्मेलन में की। उन्होंने इसे उखाड़ फैंकने की वैसी ही प्रतिबद्धता जाहिर की जैसी उनकी सासू माँ ने गरीबी को ले कर की थी। और देखिये आज देश के 58% सांसद करोड़पति हैं और सांसद चूंकि जनता के प्रतिनिधि होते है तो वे करोडपतियों के ही प्रतिनिधि तो हुये ना?  सोनियाँ जी की रिसर्च के अनुसार  जैसे प्लेग के कीटाणु चूहे के शरीर में रहते हुये भी चूहे को नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन उसके संपर्क में आने वाले मनुष्य को भयंकर कष्ट देते हैं ऐसे ही मंत्रियों, अधिकारियों और कर्मचारियों में बसने वाले भ्रष्टाचार के कीटाणु उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाते लेकिन उनके संपर्क में आने वाली जनता को बहुत दुख देते हैं। इसका इलाज वे खोज रहीं हैं। वैसे यह भी सही है की दोषी तो प्लेग का कीटाणु होता है न की चूहा। उसी तरह दोष तो भ्रष्टाचार का है न की मंत्री या अफसर का। सजा भ्रष्टाचार को दो भ्रष्टाचारी को नहीं। इसीलिए वे और राहुल बाबा हमेशा भ्रष्टाचार को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते और प्लेग कोई कानून बना कर तो ठीक होगा नहीं। रोग की सही जानकारी होना जरूरी है और इसी लिए सर्वज्ञानी सोनिया मैया का कहना है की भ्रष्टाचार के लिए सूचना का अधिकार ठीक है। इसी से तो पता लगता है की हाँ कोई नेता या अफसर भ्रष्टाचार के कीटाणु से पीड़ित है। यह डाइग्नोसिस है और कहते हैं न की रोग अगर पकड़ में आ जाए तो ठीक हो जाता है तो सूचना का अधिकार यही करता है। अब भला लोकपाल की यहाँ क्या जरूरत?  यह भी कोई अच्छी बात है की पीड़ित को और पीड़ित किया जाए। टीम अन्ना तो असल में परपीड़ा में आनंद लेती है। जब यह पता चल गया है की किसी मंत्री में   भ्रष्टाचार नामक रोग के कीटाणु हैं  तो हमें उसके कीटाणु नष्ट करने का इलाज खोजना होगा और हम पिछले 60 वर्षों से यही शोध तो कर रहे हैं और इसीलिए तो इतने सालों से लोकपाल बिल लटका रखा है। यूपीए की मैया सोनिया जी ने  तो अपनी सुविधाजनक कानून निर्मात्री मिनी विधायिका अर्थात राष्ट्रीय विकास परिषद में अन्ना जी से पहले लोकपाल बिल पर चर्चा की थी और जो सरकारी जोकपाल बिल था वह दरअसल इसी अध्ययन पर आधारित था वह तो बुरा हो अन्ना जी का की मुद्दा वे ले उड़े। सोनियाँ जी का तो  हमें और अन्ना जी को शुक्रगुजार होना चाहिए की उन्हों ने जनलोकपाल आंदोलन में जो भूमिका विदेश जा कर निभाई है वह अतुलनीय है। आंदोलन को यहाँ तक पहुंचाने का श्रेय भी उन्हीं को है। भला अन्ना जी तिहाड़ में बैठ कर क्या कर लेते। यह तो सोनिया अरे रे रे रे राहुल बाबा का भला हो जो उन्होने अन्ना को तिहाड़ से छुड़वा दिया। बड़े लोग ऐसे ही होते हैं। जब चाहें किसी को बंद करा दें जब चाहें छोड़ दें। असल में असली प्लेग तो अन्ना जी हैं और हमें उनसे निपटने के तरीके खोजने चाहिए। भ्रष्टाचार तो एक शरमीले किस्म का प्लेग है। अंदर ही अंदर सक्रिय रहता है लेकिन अन्ना प्लेग तो बड़ी तेज़ी से फैलता है। इस प्रकार भ्रष्टाचार के मूल स्वरूप पर प्रकाश डाल कर उन्होंने देश पर एहसान किया है।
और अब सोनियाँ जी ने देश के 85% प्रतिशत किसानों पर जो एहसान किया है वह तो आहहा नारायण के पालनकर्ता के स्वरूप के  समान ही है। सोचिए वाल मार्ट आयेगा। आसमान से उतरे दूत की तरह। वह किसानों के लिए सड़कें, कोल्ड स्टोरेज, परिवहन के साधन उपलब्ध कराएगा। फिर उनसे अधिक दामों पर सब्जियाँ, फल, दूध वगैरह खरीदेगा। अपने स्टोर में वह बेरोजगारों को अच्छी तनख्वाह पर नौकरी देगा और देश की जनता को पहले से कम दाम पर यह सब चीज़ें बेचेगा। ऐसा एहसान तो ईसा मसीह ने भी नहीं किया होगा। जो काम पिछले 60 वर्षों में हर तरह की सरकारें नहीं कर पाई वह एफ़डीआई के गलीचे पर सवार वालमार्ट कर देगा। तो क्यूँ ना हम इस बार चुनाव में वालमार्ट को ही चुन लें?  नहीं। वालमार्ट तो सिर्फ एक जरिया है असल किरपा तो मैया की है ना! अरे एहसान फरामोश भूल गए उन सभी एहसानों को जो ऊपर गिनाए हैं। तुम्हें इसी लिए सोनियाँ मैया को ही चुनना होगा। नेहरू, इन्दिरा और  राजीव  जैसे बलिदानी और त्यागी परिवार के अलावा भला दुनियाँ में भारत की जनता के लिए विकल्प ही कहाँ हैं।

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